मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव बना धांधली का पर्याय : रामप्रकाश प्रजापति

 मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में जो कुछ हुआ, वह भारतीय लोकतंत्र पर एक काला धब्बा है। यह चुनाव नहीं बल्कि सत्ता की हनक, प्रशासनिक धांधली और लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या का शर्मनाक उदाहरण था। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो रहे वीडियो इस धांधली के पुख्ता प्रमाण हैं, लेकिन सत्ता पक्ष और प्रशासन का रवैया इन वीडियो को नजरअंदाज करने का है, जो पूरी प्रक्रिया को संदेहास्पद बना देता है।

समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और स्थानीय मतदाताओं द्वारा बार-बार शिकायतें दर्ज कराने के बावजूद, प्रशासन ने आंखें मूंद लीं। पुलिस-प्रशासन ने सत्ता पक्ष के इशारे पर काम किया और विपक्षी समर्थकों को डराने-धमकाने से लेकर फर्जी मतदान कराने तक, हर प्रकार की अनैतिक रणनीति अपनाई गई। स्थानीय प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल इसलिए उठता है क्योंकि एसडीएम ने खुद चुनाव आयोग से बूथ कैप्चरिंग की शिकायत की, लेकिन इसके बावजूद धांधली को रोका नहीं गया। यह इस बात का प्रमाण है कि पूरा प्रशासनिक तंत्र सत्ताधारी दल के पक्ष में काम कर रहा था।

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि मतदाताओं को मतदान केंद्रों से बाहर निकालकर, बाहरी लोगों को बुलाकर फर्जी मतदान करवाया गया। चुनावी प्रक्रिया में इस तरह की धांधली लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है। अगर जनता के वोट की रक्षा नहीं की जा सकती, तो चुनाव कराने का औचित्य ही क्या रह जाता है? क्या यह सत्ता पक्ष की हार का भय था, जिसने उन्हें इस स्तर तक गिरने के लिए मजबूर कर दिया?

इस बीच, एक वायरल वीडियो ने चुनावी धांधली के आरोपों को और मजबूत कर दिया है। इस वीडियो में एक बुजुर्ग व्यक्ति यह स्वीकार करता दिख रहा है कि उसने भाजपा के पक्ष में छह वोट डाले। यह वीडियो स्पष्ट रूप से बताता है कि किस तरह से सत्ता पक्ष ने संगठित रूप से चुनाव को प्रभावित किया और जनता के निर्णय को कुचलने का प्रयास किया। यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि सुनियोजित चुनावी लूट का प्रमाण है।

इसके अतिरिक्त, एक और वायरल ऑडियो क्लिप ने प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस ऑडियो में थाना प्रभारी (SO) देवेन्द्र पांडे समाजसेवी प्रदीप यादव को भद्दी गालियाँ देते हुए और धमकी भरे लहजे में "खोदकर गाड़ने" की बात करते सुने गए। यह दर्शाता है कि किस प्रकार प्रशासनिक अधिकारी खुलेआम सत्ता पक्ष के इशारे पर विपक्षी कार्यकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को दबाने और डराने का काम कर रहे हैं। इस तरह की भाषा और धमकियां लोकतंत्र के लिए घातक हैं और प्रशासन की निष्पक्षता पर गहरा संदेह पैदा करती हैं।

मिल्कीपुर की घटना यह भी दिखाती है कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता अब केवल कागजों तक सीमित रह गई है। जब खुलेआम चुनाव लूटे जा रहे हैं और सत्ताधारी दल के इशारे पर प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग हो रहा है, तो निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव का दावा बेमानी हो जाता है। यह केवल मिल्कीपुर की बात नहीं है, बल्कि संपूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है।

हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि इस धांधली को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। चुनाव आयोग को इस पर तत्काल संज्ञान लेना चाहिए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो आने वाले चुनावों में मतदाताओं का लोकतंत्र से भरोसा पूरी तरह उठ जाएगा। आज मिल्कीपुर में हुई धांधली को नजरअंदाज किया गया, तो कल किसी और विधानसभा में यह दोहराई जाएगी।

यह समय है कि जनता और विपक्षी दल मिलकर इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं। लोकतंत्र की रक्षा केवल चुनाव लड़ने से नहीं होगी, बल्कि जनता को भी यह समझना होगा कि अगर आज उनका वोट लूटा जा रहा है, तो कल उनका पूरा अधिकार छीना जा सकता है। मिल्कीपुर उपचुनाव एक चेतावनी है कि अगर अब भी इस धांधली के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी गई, तो भविष्य में निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद करना बेकार होगा।


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राम प्रकाश प्रजापति 


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